एक शोध के अनुसार गर्भावस्था में ज़्यादा वसायुक्त भोजन करने से भ्रूण के मस्तिष्क में बदलाव आते हैं जिससे बच्चे की ज़िंदगी की शुरूआत में ही ज़्यादा खाने और मोटापे के लक्षण विकसित हो जाते हैं.
चूहों पर किए गए शोध बताते हैं कि जो बच्चे ऐसी माँओं से पैदा होते हैं जो ज़्यादा वसायुक्त भोजन करती हैं, उनके मस्तिष्क की कोशिकाएं ज़्यादा भूख लगाने वाली प्रोटीन का उत्पादन करती हैं.
रॉकफ़ैलर यूनिवर्सिटी की टीम का कहना है कि ये खोज यह बताने में मदद करती है कि क्यों पिछले कुछ वर्षों में मोटे चूहे बढ़ते जा रहे हैं.
इस अध्ययन के परिणाम न्यूरोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं.
वयस्क जानवरों पर किए पिछले शोध बताते हैं कि ट्राइग्लिसरॉयड नाम के वसा कण जब रक्त में पहुँचते हैं तो वे मस्तिष्क में ओरेक्सीजेनिक पेप्टॉयड नाम की प्रोटीन का उत्पादन करते हैं जो भूख बढ़ाते हैं.
ताज़ा अध्ययन संकेत देते हैं कि माँ के भोजन के माध्यम से ट्राइग्लिसरॉयड पहुँचने से विकसित हो रहे भ्रूण के मस्तिष्क पर भी वही असर होता है और जिसका असर अगली पीढ़ी की पूरी ज़िंदगी पर पड़ता है.
वैज्ञानिकों ने दो सप्ताह तक चूहों के ऐसे बच्चों की तुलना की जिनकी माँओं ने ज़्यादा वसायुक्त भोजन किया और जिनकी माँओं ने साधारण भोजन किया था.
उन्होंने पाया कि ज़्यादा वसायुक्त भोजन करने वाली माँओं के बच्चों ने ज़्यादा खाया और पूरी ज़िंदगी उनका वजन ज़्यादा रहा.
साथ ही उनमें साधारण भोजन करने वाली माँओं के बच्चों के मुक़ाबले काफ़ी पहले वयस्कता के लक्षण भी देखे गए.
जन्म के वक्त उनके रक्त में ट्राइग्लिसरॉयड का स्तर भी ज़्यादा पाया गया और वयस्क होने के बाद उनके मस्तिष्क में ओरेक्सीजेनिक पेप्टायड का उत्पादन भी ज़्यादा हुआ.
इसकी ज़्यादा विस्तृत समीक्षा बताती है कि जन्म से पहले भी वसायुक्त भोजन करने वाले चूहे के बच्चे में ऐसी मस्तिष्क कोशिकाओं की संख्या ज़्यादा थी जो ओरेक्सीजेनिक पेप्टायड का उत्पादन करती थीं और ऐसा पूरी ज़िंदगी होता था.
उनकी माँओं का वसायुक्त भोजन इन कोशिकाओं का उत्पादन बढ़ाने वाला प्रतीत होता है.
दूसरी ओर इसके विपरीत साधारण भोजन करने वाली माँओं के बच्चों में ये कोशिकाएं बहुत कम नज़र आईं और वे भी जन्म के काफ़ी समय बाद दिखीं.
प्रमुख शोधार्थी डॉ सारा लीबोविज़ ने कहा, "हमें इस बात के सबूत मिले हैं कि गर्भावस्था के दौरान माँ के रक्त की वसा कोशिकाएं भ्रूण में जन्म के बाद ज़्यादा खाने के लक्षण और वजन बढ़ाना भी तय करती हैं."
शोधार्थी संकेत देते हैं कि भ्रूण का मस्तिष्क इस तरह प्रोग्राम हो जाता है कि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी माँ की तरह ही भोजन करें. वे मानते हैं कि मानव में भी ऐसा ही हो सकता है.
डॉ लीबोविज़ कहती हैं, " हम ही अपने बच्चों को मोटापे के लिए प्रोग्राम करते हैं."
चेरिटी वेट कंसर्न के मेडिकल डायरेक्टर डॉ इयान कैंपबैल करती हैं, " यह तो मालूम है कि गर्भावस्था में ज़्यादा वसायुक्त भोजन करने से बच्चे में भी ज़्यादा वसायुक्त खाने की इच्छा आती है लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों होता है."
उन्होंने कहा, " स्पष्ट है कि हमारी आदतें सिर्फ़ अपने भोजन पर ही आधारित नहीं हैं बल्कि काफ़ी हद तक हमारी आदतें अपनी माँ के भोजन पर आधारित हैं."
उनका कहना है कि अपने बच्चे को स्वस्थ भोजन कराने का समय गर्भावस्था से ही शुरू हो जाता है।
With spl.Thanks to BBC